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अध्यक्ष के विचार
डॉ. अनिल काकोडकर
एमएसीएस (MACS) के संस्थापकों ने राष्ट्र निर्माण में वैज्ञानिक अनुसंधान के महत्त्व को पहचाना था। तब से, एमएसीएस अनिवार्य अनुसंधान क्षेत्रों में निरंतर कार्यरत है, जैसे उच्च उपज व रोग प्रतिरोधी फसलों की किस्मों का विकास, सूक्ष्मजीव व पादप जैव विविधता का अध्ययन, और पर्यावरण-अनुकूल सतत विकास।
एमएसीएस-आघारकर अनुसंधान संस्थान (ARI) ने उच्च उपज व रोग प्रतिरोधी गेहूँ, सोयाबीन और अंगूर की किस्मों को विकसित करके देश की खाद्य सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। इस कार्य ने हमारे देश को ‘बगैर भंडारण व्यवस्था और आयातित खाद्यान्न पर पूर्ण निर्भरता’ की स्थिति से उबरकर खाद्यान्न निर्यातक के रूप में उभरने में सहायता की है।एआरआई के वैज्ञानिकों ने संवेदनशील जैव विविधता क्षेत्रों से पौधों और सूक्ष्मजीवों की विविधता का दस्तावेजीकरण किया है, जिससे संस्थान की संग्रहण सूची समृद्ध हुई है। इस सूची में सूक्ष्मजीव, कवक, शैवाक (लाइकेन), मणिभित्तीय शैवाल (डायटम) और आवृतबीजी (एंजियोस्पर्म्स) के संग्रह शामिल हैं। यह प्रयास हमारे संसाधनों, आर्थिक संभावनाओं, संरक्षण उपायों और जैव चोरी की रोकथाम हेतु अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त, हमारे जीवाश्म संग्रह जीवाश्म विज्ञान विशेषज्ञों (पैलेन्टोलॉजिस्ट्स) के लिए उपयोगी अध्ययन सामग्री प्रदान करते हैं।
एआरआई के वैज्ञानिकों ने जैवसंधान के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान दिया है। प्राकृतिक जैव सक्रिय यौगिकों का पृथक्करण, इनके अधिक सक्रिय व कम विषाक्त रूपों का संश्लेषण, अल्ज़ाइमर, एनीमिया, मधुमेह और कैंसर जैसी गैर-संचारी (नॉनकम्युनिकेबल) बीमारियों के उपचार हेतु प्रमुख अनुसंधान क्षेत्र रहे हैं।
अपशिष्ट का जैविक उपचार हमारे अनुसंधान की एक प्रमुख विशेषता रही है। एआरआई के वैज्ञानिकों ने घरेलू व औद्योगिक अपशिष्ट जल के पर्यावरण-अनुकूल उपचार हेतु तकनीकें विकसित की हैं। इसके अलावा, जैव सामग्री से ऊर्जा उत्पादन की दिशा में भी आशाजनक तकनीकों का विकास हुआ है, जिनमें से अधिकांश ने व्यावसायीकरण हेतु निवेशकों को आकर्षित किया है।
एआरआई के वैज्ञानिकों ने नैनो-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनेक अनुप्रयोग विकसित किए हैं, जिनमें (1) रोग निदान, (2) नैनोचिकित्सा (नैनोमेडिसिन) तथा (3) कृषि में कीट नियंत्रण हेतु नैनो-सूत्रीकरण शामिल हैं।
संस्थान ज़ेब्राफ़िश, ड्रॉसोफिला और हाइड्रा जैसे आदर्श जीवों का उपयोग करके आणविकजैवविज्ञान, अनुवांशिकी और प्रतिबिंबन (इमेजिंग) को समेकित कर कोशिकीय संकेत व्यवस्था और आकार-विकास का अध्ययन करने में संलग्न रहा है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि एमएसीएस-आघारकर अनुसंधान संस्थान (ARI) ने महाराष्ट्र विज्ञानवर्धिनी के दूरदर्शी संस्थापक सदस्यों की वैज्ञानिक एवं राष्ट्रभक्ति की भावना को सार्थक किया है।
हालाँकि, आत्मसंतोष के लिए कोई स्थान नहीं है, और हमें वैज्ञानिक उत्कृष्टता तथा राष्ट्रीय विकास में योगदान के नए आयामों को निरंतर प्राप्त करने की आवश्यकता है।











